तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़ किस से किस का गिला करे कोई माने-ए-अर्ज़ मुझ को पास-ए-वफ़ा उन को ज़िद इल्तिजा करे कोई तुम तग़ाफ़ुल-शिआर दिल मायूस आह क्या हौसला करे कोई ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं क्या दवा क्या दुआ करे कोई कौन सुनता है ग़म-नसीबों की किस के दर पर सदा करे कोई ख़ैर सुन लो मिरा फ़साना-ए-ग़म ये तो कह दोगे क्या करे कोई सख़्त मुश्किल है शरह-ए-दर्द-ए-निहाँ किस तरह इब्तिदा करे कोई जिस को देखो वो है वफ़ा-दुश्मन किस से अहद-ए-वफ़ा करे कोई ख़त्म जौर-ओ-जफ़ा है मर्ग-ए-वफ़ा काश फिर इब्तिदा करे कोई लुत्फ़-ए-ताज़ीर जब हो जान-ए-हयात क्यूँ न 'हादी' ख़ता करे कोई