तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब कहीं साया मिरा पड़ा साहब है ये बंदा ही बेवफ़ा साहब ग़ैर और तुम भले भला साहब क्यूँ उलझते हो जुम्बिश-ए-लब से ख़ैर है मैं ने क्या किया साहब क्यूँ लगे देने ख़त्त-ए-आज़ादी कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब हाए री छेड़ रात सुन सुन के हाल मेरा कहा कि क्या साहब दम-ए-आख़िर भी तुम नहीं आते बंदगी अब कि मैं चला साहब सितम आज़ार ज़ुल्म ओ जौर ओ जफ़ा जो किया सो भला किया साहब किस से बिगड़े थे किस पे ग़ुस्सा था रात तुम किस पे थे ख़फ़ा साहब किस को देते थे गालियाँ लाखों किस का शब ज़िक्र-ए-ख़ैर था साहब नाम-ए-इश्क़-ए-बुताँ न लो 'मोमिन' कीजिए बस ख़ुदा ख़ुदा साहब