तुम बिन वक़्त ये कैसा गुज़रा अश्कों का इक दरिया गुज़रा मेरा ही घर भूल गया था बादल क़र्या क़र्या गुज़रा काट गया था ज़ीस्त का धारा कहने को इक लम्हा गुज़रा चीख़ थी दिल की लय में ढल कर जैसे कोई नग़्मा गुज़रा ख़ून है जिन आँखों से जारी उन में भी इक सपना गुज़रा ख़ुश रहने का ख़ाक जतन हो दिल पर भारी सदमा गुज़रा रोज़ ही लोग बिछड़ जाते हैं आह मगर इक अपना गुज़रा जान-ए-महफ़िल था जो कभी वो कैसा तन्हा तन्हा गुज़रा