तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने जुस्तुजू में अहल-ए-दिल फिरते हैं दीवाने बने सब को साक़ी ने नहीं बख़्शा दिल-ए-दर्द-आश्ना जितने अहल-ए-ज़र्फ़ थे उतने ही पैमाने बने जल्वा-ए-हुस्न और सोज़-ए-इश्क़ दोनों एक हैं शम्अ की लौ थरथराने ही से परवाने बने मौज-ए-तूफ़ाँ-ख़ेज़ उठ कर छीन ले साहिल की आस नाख़ुदा के आते आते क्या ख़ुदा जाने बने दम-ब-ख़ुद है तेरे आगे ए'तिबार-ए-अक़्ल-ओ-होश होश वाले जब बढ़े हद से तो दीवाने बने देख ले ज़ाहिद मिरी रौशन-ज़मीरी की नुमूद एक आईने से कितने आइना-ख़ाने बने ऐ 'फ़िगार' अफ़्साना-ए-दैर-ओ-हरम का ज़िक्र क्या इस हक़ीक़त के न जाने कितने अफ़्साने बने