तुम हो बज़्म-ए-ऐश है वाँ और सोहबत-दारियाँ हम हैं कुंज-ए-ग़म है याँ और जान से बेज़ारीयाँ तुम को सैर-ए-बाग़-ओ-गुल-गश्त-ए-चमन का वाँ है शौक़ याँ बदन पर हैं हुजूम-ए-दाग़ से गुल-कारियाँ ध्यान है आराइश-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का तुम्हें याद हैं हाल-ए-परेशाँ की मिरी कुछ ख़्वारियाँ तुम सफा-ए-साइद-ओ-बाज़ू दिखाते हो वहाँ हम पे याँ मू-ए-बदन करते हैं नश्तर-दारियाँ तुम ने दिखलाई वहाँ पीठ और चोटी की फबन याँ मिरी छाती पे हैं काले ने लहरें मारियाँ नेक-ओ-बद दोनों से याँ हम ने तो आँखें मूँद लीं तुम वहाँ चितवन की दिखलाते हो जादू-कारीयाँ याँ ब-रंग-ए-पैकर-ए-तस्वीर हम ख़ामोश हैं गुफ़्तुगू की तुम दिखाते हो वहाँ तर्रारियाँ क़हक़हे तुम मारते हो वाँ ब-आवाज़-ए-बुलंद दुश्मनों से याँ छुपा कर हम हैं करते ज़ारियाँ हर मरीज़-ए-ग़म की जाँ-बख़्शी का है वाँ तुम को ध्यान खिंच गईं याँ तूल-ए-शिद्दत से मिरी बीमारियाँ इज़्तिराब-ए-दिल से बे-पर्दा हुआ याँ राज़-ए-इश्क़ सूझती हैं वाँ तुम्हें हर बात में तहदारियां क्या किसी से बात कीजे भूलते इक दम नहीं उन भलाओं से वो बातों में तिरी अय्यारियाँ छीन कर बातों में दिल को 'लुत्फ' से वो बुत बने याद रखना ग़ैर की करना वहाँ दिल-दारियाँ