कैफ़ नसीब अब कहाँ ग़ुंचों के भी जमाल में किस ने ये रंग भर दिया सादगी-ए-ख़याल में क़तरा-ए-शबनम-ए-हया ग़ुंचा-ओ-गुल अरक़ अरक़ क्या क्या सिमट के आ गया दामन-ए-इंफ़िआल में जुरअत-ए-इज़तिराब-ए-दिल तू ने बता ये क्या किया उन की भी बात आ गई कोशिश-ए-अर्ज़-ए-हाल में कैसी हदीस-ए-रंग-ओ-बू ज़िक्र-ए-जमाल-ओ-नूर क्या हुस्न ही जब न आ सका दाइरा-ए-ख़याल में इश्क़ ही ख़ुद है इक जहाँ रस्म-ए-क़ुयूद से अलग इश्क़ सी कोई शय नहीं दामन-ए-माह-ओ-साल में नश्तर-ए-ग़म से कम नहीं मेरी असर-पज़ीरियाँ देर लगेगी अब ज़रा ज़ख़्म के इंदिमाल में जान-ए-हज़ीं नहीं फ़क़त महव-ए-फ़ुग़ान-ए-आरज़ू रौंदा हुआ सा दिल भी है हसरत-ए-पाएमाल में हिज्र-ओ-विसाल-ओ-रंज-ओ-ग़म हसरत-ओ-यास-ओ-आरज़ू हर शय उभर के आ गई मुबहम से इक सवाल में