तुम जहाँ थे वहाँ के थे ही नहीं या'नी तुम इस जहाँ के थे ही नहीं कैसे उलझे हैं कार-ए-दुनिया में हम जो सूद-ओ-ज़ियाँ के थे ही नहीं मैं तो इक वहशत-ए-दिगर में था मसअले जिस्म-ओ-जाँ के थे ही नहीं दश्त-ए-जाँ से निगाह-ए-यार तलक रास्ते दरमियाँ के थे ही नहीं क्यूँ मिरी दास्ताँ का हिस्सा हैं जो मिरी दास्ताँ के थे ही नहीं ख़्वाब बे-बर्ग-ओ-बार कैसे हुए जब कि ये दिन ख़िज़ाँ के थे ही नहीं