रंग उस का नया नज़र आया शाम था धूप सा नज़र आया वही कमरा वही था सब सामान वो मगर दूसरा नज़र आया रास्ते में वो आ गया था नज़र फिर कहाँ रास्ता नज़र आया वो गली दूसरी नज़र आई दर-ओ-दीवार सा नज़र आया वो जो ता'बीर था मुझे इक दिन ख़्वाब होता हुआ नज़र आया जो मयस्सर है इस में बस 'ख़ावर' दिल ही कुछ काम का नज़र आया