तुम जो आ जाओ ग़म धुआँ हो जाए बज़्म-ए-जाँ रश्क-ए-आसमाँ हो जाए टूट जाता है दम मोहब्बत का बद-गुमानी अगर जवाँ हो जाए हाल ओ माज़ी की सरहदें ऐसी ज़िंदगी पल में रफ़्तगाँ हो जाए साफ़ सुथरा मुआमला रखिए उस से पहले अज़ाब-ए-जाँ हो जाए चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार जब कोई शख़्स बद-गुमाँ हो जाए लाज़मी हैं वज़ाहतें 'अश्फ़ाक़' जब कोई दोस्त बद-गुमाँ हो जाए