तुम जो छालों की बात करते हो क्यूँ हिमालों की बात करते हो किस के हाथों में था नहीं पत्थर शाम वालों की बात करते हो अपने चेहरे पे पोत कर कालक तुम उजालों की बात करते हो ख़ुश्क रोटी तो दे नहीं सकते तर निवालों की बात करते हो जो नमक हैं हमारे ज़ख़्मों पर उन हवालों की बात करते हो छीन कर हम से जुरअत-ए-इज़हार अब सवालों की बात करते हो जिस्म जिन के हैं बोझ रूहों पर उन जियालों की बात करते हो