तुम ख़फ़ा क्या हुए हयात गई जान तस्कीन-ए-काएनात गई जब से मुरझा गई है दिल की कली रौनक़-ए-गुलशन-ए-हयात गई साक़िया सिर्फ़ अपने अपनों पर बस तिरी चश्म-ए-इल्तिफ़ात गई हाए बेचारगी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र वो भी ता-हद्द-ए-मुम्किनात गई एक आँसू की तर्जुमानी से अज़मत-ए-ग़म की सारी बात गई दर्द-ए-दिल में हुई है जब से कमी क्या कहें लज़्ज़त-ए-हयात गई हम ही हम थे कभी निगाहों में अब कहाँ है वो पहली बात गई चैन अब भी कहाँ है दिल को 'वक़ार' बे-क़रारी में सारी बात गई