तुम को मैं जब सलाम करता हूँ तब फ़ुग़ाँ गाम गाम करता हूँ ग़ुंचा-ओ-गुल की ख़स्ता-हाली का ज़िक्र में सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ बे-सुतूँ काट कर खड़ा हूँ मैं कोहकन जैसे काम करता हूँ आतिश-ए-इश्क़ जब जलाती है जल के मैं नोश-ए-जाम करता हूँ शेर होता नहीं है जब 'बाबर' उस का कुछ एहतिमाम करता हूँ