है जो ख़ामोश बुत-ए-होश-रुबा मेरे बाद गुल खिलाएगा कोई और नया मेरे बाद तू जफ़ाओं से जो बदनाम किए जाता है याद आएगी तुझे मेरी वफ़ा मेरे बाद कोई शिकवा हो सितमगार तो ज़ाहिर कर दे फिर न करना तू कभी कोई गिला मेरे बाद इबरत-अंगेज़ है अफ़्साना मिरे मरने का रुक गए हैं क़दम-ए-उम्र-ए-बक़ा मेरे बाद ज़मज़मे ख़ाना-ए-सय्याद के क्यूँ गूँजते हैं क्या कोई ताज़ा गिरफ़्तार हुआ मेरे बाद सर के बल इश्क़ की मंज़िल को किया तय मैं ने नहीं मिलते जो निशान-ए-कफ़-ए-पा मेरे बाद 'साबिर'-ए-ख़स्ता को हर हाल में या रब रख शाद कहीं ऐसा न हो हो सब्र फ़ना मेरे बाद