तुम को सोचा तीरगी में देर तक मैं नहाया रौशनी में देर तक धूप में रहना था सारा दिन हमें कैसे रहते चाँदनी में देर तक चीख़ घुट कर रह गई दिल में मगर शोर गूँजा ख़ामुशी में देर तक फिर मुझे आवाज़ दी इक शख़्स ने फिर मैं ठहरा उस गली में देर तक ग़र्क़ हो जाने से पहले कश्तियाँ लड़खड़ाई थीं नदी में देर तक लोग क्या समझेंगे ये सोचे बग़ैर हम भी चिल्लाए ख़ुशी में देर तक अपना ग़म दे कर वो रुख़्सत हो गया दिल मिरा रोया ख़ुशी में देर तक ख़ुद से मिलने के जतन में ऐ 'पवन' मैं रहा बे-रब्तगी में देर तक