तुम मेरा इंतिख़ाब तुम्हारा मैं इंतिख़ाब तुम भी हो ला-जवाब तो मैं भी हूँ ला-जवाब फ़ुर्सत उस आदमी को कहाँ है गुनाह की रोटी जिस आदमी को हो मुश्किल से दस्तियाब यूँ दिल में तेरे दर्द को हम ने सजा रखा मेहराब में हो जैसे मुक़द्दस कोई किताब अब क्या किसी से कोई वफ़ा की रखे उमीद हर कोई कर रहा है वफ़ाओं से इज्तिनाब किन किन ख़राबियों का करूँ ज़िक्र मैं 'शकील' अल-क़िस्सा-मुख़्तसर कि ज़माना ही है ख़राब