तुम ने सीखा है कहाँ से सब को टर्ख़ाने का ढंग आदमी तो आदमी है रब को बहकाने का ढंग बात हो रुख़्सत की तुम सा कोई भी फ़ाइक़ नहीं तुम न जानो ग़म-ज़दों के ख़्वाब में आने का ढंग सालहा सज्दे किए तुम को बुलाने के लिए जानते हो तुम मगर पल में चले जाने का ढंग वस्ल के वा'दों से लीं मुर्शिद ने तो शीरीनियाँ जानता लेकिन नहीं है अब वो मिलवाने का ढंग बुत-कदे में क्यों न मैं चूमूँ क़दम असनाम के कारगर कितना है तेरा पाँव दीवाने का ढंग साँप के मानिंद जिस लय पे हो तुम जानम फ़िदा कोई तो हम को सिखाए वो कभी गाने का ढंग दिल जलाना रूठना फबती उड़ाना कोसना किस से सीखा है ये तू ने ख़ुद को बहलाने का ढंग ऐ सरापा-नाज़ बन जाती है तू तो साहिरा वाह कितना है मुअस्सिर तेरे शरमाने का ढंग