तुम पिलाओ ये कम ग़नीमत है मय नई है तो सम ग़नीमत है है ख़ुशी की भी कैफ़ियत मालूम हो मयस्सर तो ग़म ग़नीमत है तुम न आए सहर तो आ ही गई दम-ब-दम दम-ब-दम ग़नीमत है इस में संग-ए-गिराँ भी मिलते हैं राह का पेच-ओ-ख़म ग़नीमत है रात दिन आसमाँ हैं चक्कर में मिल जो बैठें बहम ग़नीमत है ज़िंदगानी का ए'तिबार नहीं जो गुज़र जाए दम ग़नीमत है का'बा-ओ-दैर से नजात मिली तेरा नक़्श-ए-क़दम ग़नीमत है शाइरी दिल-लगी नहीं 'शौकत' जो है ज़ोर-ए-क़लम ग़नीमत है