तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं किस को ख़बर थी साँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं टूट गया जब दिल तो फिर ये साँस का नग़्मा क्या मा'नी गूँज रही है क्यूँ शहनाई जब कोई बारात नहीं ग़म के अँधियारे में तुझ को अपना साथी क्यूँ समझूँ तू फिर तू है मेरा तो साया भी मेरे साथ नहीं माना जीवन में औरत इक बार मोहब्बत करती है लेकिन मुझ को ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं ख़त्म हुआ मेरा फ़साना अब ये आँसू पोंछ भी लो जिस में कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यूँ हैरान 'क़तील' जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं