तुम से भी अब तो जा चुका हूँ मैं दूर-हा-दूर आ चुका हूँ मैं ये बहुत ग़म की बात हो शायद अब तो ग़म भी गँवा चुका हूँ मैं इस गुमान-ए-गुमाँ के आलम में आख़िरश क्या भुला चुका हूँ मैं अब बबर शेर इश्तिहा है मिरी शाइ'रों को तो खा चुका हूँ मैं मैं हूँ मे'मार पर ये बतला दूँ शहर के शहर ढह चुका हूँ मैं हाल है इक अजब फ़राग़त का अपना हर ग़म मना चुका हूँ मैं लोग कहते हैं मैं ने जोग लिया और धूनी रमा चुका हूँ मैं नहीं इमला दुरुस्त 'ग़ालिब' का 'शेफ़्ता' को बता चुका हूँ मैं