तुम से जाना कि इक किताब हूँ मैं हर्फ़-दर-हर्फ़ ला-जवाब हूँ मैं हसरत-ए-मौसम-ए-गुलाब हूँ मैं सच न हो पाएगा वो ख़्वाब हूँ मैं आप ने ए'तिबार ही न किया में तो कहती रही सराब हूँ मैं मुझ से अपनी नमी न सूख सकी आप कहते हैं आफ़्ताब हूँ मैं हो के मौजूद भी नहीं दिखता वो अमावस का माहताब हूँ मैं उस से मिलते नहीं उसूल 'सहर' चाहती जिस को बे-हिसाब हूँ मैं