तुम से रुख़्सत-तलब है मिल जाओ कोई अब जाँ-ब-लब है मिल जाओ लौट कर अब न आ सकें शायद ये मसाफ़त अजब है मिल जाओ दिल धड़कते हुए भी डरता है कितनी सुनसान शब है मिल जाओ इस से पहले नहीं हुआ था कभी दिल का जो हाल अब है मिल जाओ ख़्वाहिशें बे-सबब भी होती हैं क्या कहें क्या सबब है मिल जाओ कौन अब और इंतिज़ार करे इतनी मोहलत ही कब है मिल जाओ