तुम्हारा हिज्र अगर ज़ाइचे में ढल जाए ये काएनात किसी हादसे में ढल जाए हमारी आँख में गर नींद ख़ुद-कुशी कर ले तुम्हारा ख़्वाब अभी रतजगे में ढल जाए मैं एक लम्स की नुदरत पे काम कर पाऊँ अगर वो हुस्न किसी ज़ाविए में ढल जाए मिरी ग़ज़ल में मोहब्बत का रंग शामिल हो तुम्हारा जिस्म अगर क़ाफ़िए में ढल जाए है याद-दाश्त में बाक़ी तो हिफ़्ज़ कर 'हारिस' नहीं बईद वो कब मख़मसे में ढल जाए