तुम्हारा इश्क़ जब से क्या हुआ ऐ नाज़नीं हम को पसंद आता नहीं है कोई भी अब मह-जबीं हम को किया इज़हार जब हम ने ग़म-ए-फ़ुर्क़त तो वो बोले तुम्हारे कहने का होता नहीं है कुछ यक़ीं हम को पस-ए-मुर्दन पए-पामाल गोरिस्ताँ में फिरते हैं निशान-ए-तुर्बत-ए-उश्शाक़ मिल जाए कहीं हम को बुतान-ए-संग-दिल से क्या हो उम्मीद-ए-वफ़ा ऐ दिल जहाँ में ढूँड बैठे कुछ पता मिलता नहीं हम को न जाएँ मर के वो हैं आशिक़-ए-जाँबाज़ ऐ हमदम तिरे कूचे में गर मिल जाए थोड़ी सी ज़मीं हम को तिरे दर पर खड़े हैं दीद को हम एक मुद्दत से दिखा दे शक्ल-ए-नूरानी अब ऐ पर्दा-नशीं हम को 'अज़ीज़'-ए-ज़ार गर इश्क़-ए-बुताँ में ये रही सूरत किसी दिन मार डालेगा दिल-ए-अंदोह-गीं हम को