और क्यों दर्द-ए-सर कीजिए बात को मुख़्तसर कीजिए अश्क तो ख़त्म ही हो चुके ख़ून से चश्म तर कीजिए क़द्र-दाँ ही न जब कोई हो किस से अर्ज़-ए-हुनर कीजिए रहज़नों को हया जिन से आए मत उन्हें राहबर कीजिए कीजे ता'मीर बे-शक महल क्यों हमें दर-ब-दर कीजिए जैसे ख़ुशबू रहे फूल में ज़िंदगी यूँ बसर कीजिए