तुम्हारे बाद आँखों की गली में कोई आता नहीं वीरानगी में मगर वो ज़ख़्म मेरे सी न पाया बहुत मशहूर है बख़िया-गरी में जिए जाते उसी के लुत्फ़ में हम अगर इक दुख ही होता ज़िंदगी में सुनाता जा रहा था हिज्र का दुख वो बरसों बाद मिलने की ख़ुशी में वो अल्हड़ आइने से झाँकती है भुला बैठी मैं जिस को बे-दिली में तुम्हें दिल से किया रुख़्सत मगर अब तुम्हीं तुम हो हमारी शायरी में बराबर चल रही हैं दोनों सूइयाँ हमारा वक़्त आएगा घड़ी में