तुम्हारा नाम ज़बाँ से निकल गया आख़िर ज़माना मेरे गुमाँ से निकल गया आख़िर सँभाल कर जिसे रक्खा हुआ था मुद्दत से वो तीर तेरी कमाँ से निकल गया आख़िर तमाम अपने सवाल-ओ-जवाब भूल गए हिसाब-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से निकल गया आख़िर हर एक शख़्स में तुझ को तलाश करता हुआ हुजूम-ए-नुक्ता-वराँ से निकल गया आख़िर जो लाज़मी था तिरे सामने अदा होना वो एक लफ़्ज़ बयाँ से निकल गया आख़िर तुम्हारे सामने कब तक ख़िरद वफ़ा करती मकीन-ए-होश मकाँ से निकल गया आख़िर मिरी तलाश में हद ही उबूर कर डाली मिरे लिए वो जहाँ से निकल गया आख़िर