तुम्हारा रंग रंग-ए-आसमाँ जैसा बदलता है किसी को चाहने वाला कहीं इतना बदलता है सबा शबनम शफ़क़ रुख़्सार गुल महताब इन सब का तुम्हारा नाम लेता हूँ तो क्यूँ चेहरा बदलता है सबा गुफ़्तार शीरीं लब सितारा चश्म हैं तो क्या बदलते हम भी हैं जब सामने वाला बदलता है कभी जाती नहीं जंगल की बू संदल के पैकर से कि सूरत के बदलने से कहीं रिश्ता बदलता है ये शहर-ए-बे-सदा अंदर से शहर-ए-आरज़ू निकला धुआँ हर-दम यहाँ बुझते चराग़ों का बदलता है उतरते वक़्त पानी में ज़रा ये देख लेना था कि अंदर बीच में जा कर यही दरिया बदलता है रहो दीवार के साए में लेकिन देखते रहना हमेशा रुख़ यहाँ दीवार का साया बदलता है सुख़न रस्ता लकीरों से नहीं लफ़्ज़ों से रौशन है लकीरें पीटने से भी कभी रस्ता बदलता है 'मतीन' आओ चलें खे़मे की जानिब इक ज़रा सो लें वो देखो सुब्ह का तारा लिबास अपना बदलता है