तुम्हारे बिन अब के जान-ए-जाँ मैं ने ईद करने की ठान ली है ग़मों के एक एक पल से ख़ुशियाँ कशीद करने की ठान ली है मैं उस की बातों का ज़हर अपनी ख़मोशियों में उतार लूँगा अगर मुज़िर है तो मैं ने उस को मुफ़ीद करने की ठान ली है तलाश की शिद्दतों ने अर्ज़-ओ-समा की सब दूरियाँ मिटा दीं सो मैं ने अब तेरी जुस्तुजू को शदीद करने की ठान ली है मशीन बोना है जिन का पेशा उन्हें ज़मीं बेच दी है तुम ने किसान हो कर ख़ुद अपनी मिट्टी पलीद करने की ठान ली है ये मेरी तहज़ीब का असासा ही मेरी पहचान बन सकेगा तमाम कोहना रिवायतों को जदीद करने की ठान ली है स्याह शब का ग़नीम शायद कि आ गया रौशनी की ज़द में सभी चराग़ों को जिस ने 'आज़िम' शहीद करने की ठान ली है