तुम्हारे चेहरे की दिलकशी से कली गुमाँ की खिली हुई है तुम्हारी यादों की बारिशों से ज़मीन-ए-हिज्राँ धुली हुई है ये जागने की तुम्हारी आदत अभी तलक है वो पहले जैसी तुम्हारे बिस्तर की उजली चादर भी सिलवटों से भरी हुई है जो हो सके तो कोई निशानी बतौर तोहफ़ा ही भेज देना तुम्हारी भेजी हुई वो टाई पहन पहन कर फटी हुई है बिछड़ते लम्हे छुपा के सब से जो तुम ने बिस्तर पे फेंक दी थी तुम्हारी तस्वीर ताक़चे में अभी तलक वो रखी हुई है तुम्हारे होते हुए भी देखो मैं ख़ुद को तन्हा समझ रहा हूँ मुझे तो लगता है ये जुदाई मिरे बदन से सिली हुई है ये मेरे अहबाब पूछते हैं बताओ उन को मैं क्या कहूँ अब ये कौन लड़की तुम्हारे पहलू में सज सँवर कर खड़ी हुई है वो कुछ दिनों से किसी के ग़म में उदास चेहरा लिए हुए है क़सम ख़ुदा की मैं क्या बताऊँ मिरी तो जाँ पे बनी हुई है कि छोड़ो 'दानिश' की बात छोड़ो मुझे सुनाओ कि क्या लिखा है वो ख़ाक तेरी ग़ज़ल सुनेगा उसे तो अपनी पड़ी हुई है