ख़ुद की रूह जलाई है By Ghazal << रब्त दिल से कोई बनाओ तुम तुम्हारे चेहरे की दिलकशी ... >> ख़ुद की रूह जलाई है फिर ये क़लम उठाई है ख़ाली तेरा दोश नहीं क़िस्मत भी हरजाई है शाइ'र निकलो पन्नों से घर में रोटी ढाई है दिल्ली सारी झुलस गई किस ने आग लगाई है झूठा हँसना ग़लत नहीं ये ग़म की तुरपाई है 'दीपक' छोड़ो दुनिया अब रब के घर सुनवाई है Share on: