तुम्हारे दर्द के जैसा नहीं है हमारे दर्द का चेहरा नहीं है अगरचे इश्क़ सा महँगा नहीं है मगर ये हिज्र भी सस्ता नहीं है हमारी आँख से देखो तो जानो मुताबिक़ इश्क़ के दुनिया नहीं है चलो अब ढूँढा जाए फिर नया ग़म कि काग़ज़ पे कोई मिस्रा नहीं है ज़रा नश्तर चुभाओ ज़ोर से फिर ये ज़ख़्म-ए-दिल अभी गहरा नहीं है सफ़ाई मैं कहाँ तक उस को देता मिरा हो कर भी जो मेरा नहीं है जबीं के नीचे जो दो सीपियाँ हैं गुहर इन में अभी बनता नहीं हैं मिले तो हैं बहुत मुझ को जहाँ में मगर कोई मिरे जैसा नहीं है