तुम्हारे ख़ज़ाने में क्या कुछ नहीं हमारे मुक़द्दर में था कुछ नहीं जिसे चाहे जो कुछ समझ लीजिए हक़ीक़त में अच्छा-बुरा कुछ नहीं कहूँ क्या कोई सुनने वाला भी हो मेरे पास कहने को क्या कुछ नहीं मेरी बात सरकार ने सुन तो ली मेरी बात सुन कर कहा कुछ नहीं बनाने को क्या कुछ बनाया गया मगर इस से अपना बना कुछ नहीं मोहब्बत में ये तज्रबा हो गया मोहब्बत में ग़म के सिवा कुछ नहीं मिले उन से मिलने को सौ बार हम मगर उन से मिल कर मिला कुछ नहीं जिए जा रहे है जिए जा रहे मगर ज़िंदगी में मज़ा कुछ नहीं सभी कुछ सुना कर भी 'सरशार' को वो कहते हैं हम ने कहा कुछ नहीं