तुम्हारे शहर में क्यों ख़ामुशी है यहाँ हर आँख में कैसी नमी है कहीं से ढूँड कर लाओ वो लम्हा हमारी ज़ीस्त में जिस की कमी है तिरा मासूम लहजा कौन भूले तिरा तो बोलना ही सादगी है कहीं सूरज नज़र आता नहीं है हुकूमत शहर में अब धुँद की है किसी को जान देने पर मसर्रत किसी को जान लेने की ख़ुशी है जुदाई का तसव्वुर साथ रखना मोहब्बत में जुदाई लाज़मी है