है मुस्तक़िल यही एहसास कुछ कमी सी है तलाश में है नज़र दिल में बेकली सी है किसी भी काम में लगता नहीं है दिल मेरा बड़े दिनों से तबीअत बुझी बुझी सी है बड़ी अजीब उदासी है मुस्कुराता हूँ जो आज कल मिरी हालत है शाइरी सी है गुज़र रहे हैं शब ओ रोज़ बे-सबब मेरे ये ज़िंदगी तो नहीं सिर्फ़ ज़िंदगी सी है थकी तो एक मोहब्बत ने मूँद ली आँखें हर एक नींद से अब मेरी दुश्मनी सी है तिरे बग़ैर कहाँ है सुकून क्या आराम कहीं रहूँ मिरी तकलीफ़ बेघरी सी है नहीं वो शम-ए-मोहब्बत रही तो फिर 'आसिम' ये किस दुआ से मिरे घर में रौशनी सी है