तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया दिया सुर्मा भी और चिपका न पाया ख़ुदा को क्या कहूँ पाया न पाया कि वस्ल-ए-बे-ख़ुदी असला न पाया बहुत सूरत को मैं तरसा न पाया न पाया वो बहुत तरसा न पाया सहाब-ए-तर ने बहर-ए-ख़ुश्क सब ने हमारा दीदा-ए-तर सा न पाया चले हम दिल जले इस बज़्म से यार जले हाथों से इक बेड़ा न पाया सदा सूरज ने दिन भर उस को ढूँडा कभी वो चाँद का टुकड़ा न पाया बहुत अच्छा हुआ अच्छी है क़िस्मत मरीज़-ए-इश्क़ को अच्छा न पाया जो इस गर्दन का नक़्शा है वो हम ने सुराही-दार मोती का न पाया दुर्र-ए-अश्क-ए-मुसलसल ऐ शह-ए-इश्क़ तिरी दौलत से ये सेहरा न पाया बहुत सीधा बनाऊँगा फ़लक को कि इस कज को कभी सीधा न पाया