शब-ए-ग़म ऐश का मुज़्दा सुनाने कौन आता है ये मेरे आँसुओं में मुस्कुराने कौन आता है ठहर सकता नहीं सीने में जब दिल मुज़्तरिब हो कर सुकूँ बन कर मिरे पहलू में जाने कौन आता है कुचल देती है जब एहसास को संजीदगी ग़म की शरारत से मिरा दिल गुदगुदाने कौन आता है भयानक तीरगी में ग़म की जब दम घुटने लगता है चराग़-ए-कुश्ता-ए-इशरत जलाने कौन आता है शब-ए-ग़म दिल पे छा जाता है जब इक हुज़्न-ए-बे-ख़्वाबी नशात-ए-रूह बन बन कर सुलाने कौन आता है वफ़ूर-ए-यास कर देता है जब लबरेज़-ए-ग़म दिल को ख़ुशी बन कर मिरे दिल में समाने कौन आता है अजल के तेज़ क़दमों की जब आहट आने लगती है ब-अंदाज़-ए-मसीहाई सिरहाने कौन आता है मिरा दिल डूबने लगता है जब ग़म के समुंदर में मिरी कश्ती को साहिल से लगाने कौन आता है नज़र आता है जिस में इशरत-ए-माज़ी का मुस्तक़बिल मुझे इस ख़्वाब-ए-ग़मगीं से जगाने कौन आता है