तुम्हारी ज़ुल्फ़ के चर्चे परेशानियों में रहते हैं मिरी दीवानगी के ज़िक्र दीवानों में रहते हैं नहीं परवा-ए-ईमाँ काफ़िरान-ए-इश्क़ को हरगिज़ उन्हें काबा से किया मतलब जो बुतख़ानों में रहते हैं तलाश इस रश्क-ए-लैला की जो रहती है हमें हर-दम उसी से क़ैस के मानिंद वो वीरानों में रहते हैं मियान-ए-महफ़िल-ए-अहबाब है वो शम्अ' की सूरत हम उस से लौ लगाए उस के परवानों में रहते हैं फ़लक से बढ़ के रुत्बा हो न क्यूँ कर क़स्र-ए-जानाँ का मलाएक जिस जगह अदना से दरबानों में रहते हैं अजब है नेक सोहबत की न होता सैर इंसाँ में मोहज़्ज़ब बनते हैं हैवान जो इंसानों में रहते हैं न हो मज़मून आली क्यूँ भला अशआ'र 'अहक़र' में सुख़न-दानों से सोहबत है ज़बान-दानोंं में रहते हैं