तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए अजीब सोज़ से लबरेज़ हैं मिरे नग़्मे कि साज़-ए-दिल है मोहब्बत की चोट खाए हुए जो तुझ से कुछ भी न मिलने पे ख़ुश हैं ऐ साक़ी कुछ ऐसे रिंद भी हैं मय-कदे में आए हुए तुम्हारे एक तबस्सुम ने दिल को लूट लिया रहे लबों पे ही शिकवे लबों पे आए हुए 'असर' भी राह-रव-ए-दश्त-ए-ज़िंदगानी है पहाड़ ग़म का दिल-ए-ज़ार पर उठाए हुए