तुम्हें देखा औरों पे एहसान करते फ़क़त रह गए हम ही अरमान करते सलीक़ा नहीं जब निभाने का हम को मोहब्बत तुझे क्यूँ पशेमान करते तिरा आइना भी तिरा अक्स भी मैं तिरी लोग मुझ से ही पहचान करते है ये ज़िंदगी रेत का इक घरौंदा भला क्यूँ हवाओं को मेहमान करते सितम ये है अपनों से खाया है धोखा यही काम ऐ काश अंजान करते उड़ाई न आँगन से घड़ियाँ चहकती कि वीराने को और सुनसान करते