आरज़ू-ए-विसाल-ए-यार करें किस के आने का इंतिज़ार करें दर्द के किस मक़ाम से गुज़रें अपना दरिया कहाँ से पार करें किस से किस मोड़ पर बिछड़ जाएँ कौन सा हिज्र इख़्तियार करें ये जो इक ज़ख़्म-ए-जाँ पस-ए-जाँ है किस के सीने के आर-पार करें फ़ुर्सत-ए-शौक़ उम्र-ए-आवारा आ तुझे आज शर्मसार करें दिल की ऊँची मचान पर बैठें और कोई आरज़ू शिकार करें मसअला ये है किस हवाले से कोई ख़्वाहिश सिपुर्द-ए-यार करें काश तुम रोज़ ही मुकर जाओ काश हम रोज़ इंतिज़ार करें चाँद छत पर ज़रूर आएगा मेरी आँखों का ए'तिबार करें एक मुश्किल सी आ पड़ी है 'क़ैस' तेरी आँखों पे क्या निसार करें