तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा तो मेरी आँख में आँसू नज़र न आएगा ये ज़िंदगी का मुसाफ़िर ये बे-वफ़ा लम्हा चला गया तो कभी लौट कर न आएगा बनेंगे ऊँचे मकानों में बैठ कर नक़्शे तो अपने हिस्से में मिट्टी का घर न आएगा मना रहे हैं बहुत दिन से जश्न-ए-तिश्ना-लबी हमें पता था ये बादल इधर न आएगा लगेगी आग तो सम्त-ए-सफ़र न देखेगी मकान शहर में कोई नज़र न आएगा 'वसीम' अपने अँधेरों का ख़ुद इलाज करो कोई चराग़ जलाने इधर न आएगा