तुम्हें ज़ेबा नहीं हरगिज़ सिले की आरज़ू रखना तुम्हारा काम है 'आतिश' क़लम की आबरू रखना अगर दिल में तमन्ना-ए-नशात-ए-रंग-ओ-बू रखना मआल-ए-ख़ंदा-गुल को भी अपने रू-ब-रू रखना ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है यहाँ जो भी क़दम रखना हमेशा बा-वज़ू रखना कहीं तौक़-ओ-सलासिल हैं कहीं ज़हर-ए-हलाहल है मुझे हर आज़माइश में इलाही सुर्ख़-रू रखना ज़माने पर किसे मालूम कैसा बार गुज़रा है मिरा हक़्क़-ओ-सदाक़त पर मदार-ए-गुफ़्तुगू रखना न मिल पाए सुराग़-ए-मंज़िल-ए-जानाँ न मिल पाए हमारा काम है जारी तलाश-ओ-जुस्तुजू रखना