तुम्हें जो मेरे ग़म-ए-दिल से आगही हो जाए जिगर में फूल खिलें आँख शबनमी हो जाए अजल भी उस की बुलंदी को छू नहीं सकती वो ज़िंदगी जिसे एहसास-ए-ज़िंदगी हो जाए यही है दिल की हलाकत यही है इश्क़ की मौत निगाह-ए-दोस्त पे इज़हार-ए-बेकसी हो जाए ज़माना दोस्त है किस किस को याद रक्खोगे ख़ुदा करे कि तुम्हें मुझ से दुश्मनी हो जाए सियाह-ख़ाना-ए-दिल में है ज़ुल्मतों का हुजूम चराग़-ए-शौक़ जलाओ कि रौशनी हो जाए तुलू-ए-सुब्ह पे होती है और भी नमनाक वो आँख जिस की सितारों से दोस्ती हो जाए अजल की गोद में 'क़ाबिल' हुई है उम्र तमाम अजब नहीं जो मिरी मौत ज़िंदगी हो जाए