तुम्हीं फेर लोगे जो हम से निगाहें मिलेंगी कहाँ ग़म-ज़दों को पनाहें बशर नापता है सितारों की राहें उसे ले न डूबें ये परवाज़-गाहैं तलातुम से कब डूबते हैं सफ़ीने अगर डूबते दिल डुबोना न चाहें ठहरती हैं गुल पर न शम्स-ओ-क़मर पर न जाने किसे ढूँढती हैं निगाहें उन्हें मिल गया नाम दैर-ओ-हरम का जो इंसानियत की हैं क़ुर्बान-गाहें नहीं कोई उम्मीद हम को वफ़ा की जफ़ा ही सही आप कुछ तो निबाहें जुनूँ ही यहाँ काम आए तो आए बहुत पुर-ख़तर हैं मोहब्बत की राहें मिरी काएनात-ए-मोहब्बत है 'साबिर' यही चंद आँसू यही चंद आहें