तिरे जलवों का वो आलम नहीं है शुऊ'र-ए-दीद वर्ना कम नहीं है निज़ाम-ए-ज़िंदगी है मुंतशिर सा मिज़ाज-ए-यार तो बरहम नहीं है कभी लज़्ज़त-कश-ए-राहत न होंगे मुयस्सर जिन को तेरा ग़म नहीं है दिया है ग़म ज़माने भर का मुझ को इनायत ये भी तेरी कम नहीं है हमें उम्मीद हो क्यूँकर करम की सितम भी जब तिरा पैहम नहीं है नवाज़िश हो गई जिस पर जुनूँ की उसे दुनिया में कोई ग़म नहीं है मुयस्सर है तिरी आँखों की मस्ती मुझे सौदा-ए-जाम-ए-जम नहीं है सलीक़ा हो अगर जीने का 'साबिर' हयात-ए-चंद-रोज़ा कम नहीं है