तुम ने हाथों पे मिरा नाम लिखा मेरे बा'द मेरा हर लफ़्ज़ बना रंग-ए-हिना मेरे बा'द मेरे होने ही से था उस पे यक़ीन-ए-कामिल कितना बे-फ़ैज़ सा है मेरा ख़ुदा मेरे बा'द कौन मयख़ाने की तहज़ीब से वाक़िफ़ थे यहाँ सब को आ जाएगी पीने की अदा मेरे बाद मैं जो महरूम-ए-करम दर से तिरे लौटा हूँ हाथ अब उठते नहीं बहर-ए-दुआ मेरे बा'द मेरे होते जिसे कहते हुए ख़ाइफ़ थे सभी ज़िंदगी ने वही अफ़्साना कहा मेरे बा'द सरख़ुशी रास न आई जिसे हमराह मिरे जाम-ए-ग़म पी के वो शादाब हुआ मेरे बा'द आज भी ख़ुश्क है काँटों की ज़बाँ ख़ाक-ए-चमन भेजना फिर से कोई आबला-पा मेरे बाद कोई आहट है न सरगोशी न आवाज़ कोई कितना तन्हा है ये सहरा-ए-वफ़ा मेरे बाद मैं ही था जो तिरी तौसीफ़ किया करता था अब 'ख़लिश' कौन करे तेरी सना मेरे बा'द