तुर्फ़ा माजून है हमारा यार ग़ैर से हम-कनार हम से कनार हम कहें बाग़ चल तो हाँ न कहे ग़ैर के साथ रोज़ सैर ओ शिकार हम को मज्लिस में देख चुप हो जाए ग़ैर से टोक कर करे गुफ़्तार हम को देखे कहीं तो आँखें चुराए ग़ैर को देख कर आप से हो दो-चार ग़ैर से साफ़ सीना हो के मिले हम से दिल में रखे हमेशा ग़ुबार ग़ैर जौर-ओ-जफ़ा ओ बे-मेहरी हम से इस का नहीं है और शिआर ग़ैर की बात सुन के ख़ुश होवे हम से हर बात में करे तकरार मिन्नत-ओ-इज्ज़-ओ-इंकिसार-ओ-नियाज़ करते करते हुए बहुत लाचार वो किसी तरह आश्ना ही नहीं इम्तिहाँ हम किया है चंदें यार ज़रा भी कान धर कभू न सुने दर्द-ए-दिल हम अगर करें इज़हार जान और माल दे चुकें उस को दिल से जाने हमें अगर ग़म-ख़्वार जो रहे हम से रोज़ बेगाना सोहबत ऐसे से कैसे हो बर्रार कर इलाही तू मेहरबाँ उस को जिस के पीछे हुए हैं ज़ार-ओ-निज़ार ग़रज़ अब शिकवा कब तलक कीजे चुप ही रहना है 'हातिम' अब दरकार