ये मिरा बुझता सुलगता सिन ये मेरे रात-दिन किस तरह कटते भला तुझ बिन ये मेरे रात-दिन बीते सावन कह रहे हैं ये छमा-छम थे कभी अब तो हैं गोया फ़क़त किन-मिन ये मेरे रात-दिन मैं ने अरमानों का पहला रक़्स देखा था जहाँ काश हो जाते वहीं साकिन ये मेरे रात-दिन ढूँढ लाते हैं हमेशा मेरे जुर्मों का जवाज़ ये मिरे सब से बड़े मोहसिन ये मेरे रात-दिन तू समझता है जुदा ख़ुद को अगर मुझ से तो फिर सैंकड़ों से ज़र्ब दे कर गिन ये मेरे रात-दिन डर रहा हूँ उम्र की ना-पाएदारी से 'क़तील' वक़्त के हाथों न जाएँ छिन ये मेरे रात-दिन