टूटे हैं आइनों की तरह बार बार हम ख़ुद पर हुए हैं जब भी कभी आश्कार हम होते हैं तेरी याद में जब बे-क़रार हम रोते हैं पहरों बैठ के बे-इख़्तियार हम तेरी हँसी का क़र्ज़ चुकाने के वास्ते छुप छुप के रोते रहते हैं ज़ार-ओ-क़तार हम दिल भर गया है कर्ब-ए-मुसलसल से ऐ ख़ुदा अब ढूँडते हैं हर घड़ी राह-ए-फ़रार हम मुरझा गए हैं शाख़-ए-तमन्ना के गुल सभी अब क्या मनाएँ 'मीना' ये जश्न-ए-बहार हम