टूटे हैं जब से ज़ोर जुनूँ की तनाब के हसरत से देखती हूँ ये खे़मे शबाब के ऐ दिल न छेड़ ज़िक्र उसी ख़ुश-ख़िराम का मैं पी चुकी हूँ घोल के शो'ले गुलाब के ज़िंदान-ए-बज़्म-ए-शौक़ में ऐसे भी रिंद हैं तिश्ना रहे जो पी के समुंदर शराब के ये बज़्म-ए-चश्म-ओ-लब है मिरी जाँ अभी न जा बढ़ने दे राब्ते ये सवाल-ओ-जवाब के 'मानी' न आज पूछ वो कैसे बदल गए राह-ए-जुनूँ में नक़्श-ए-क़दम हैं जनाब के